पाठ का अर्थ
छायावाद के चार स्तम्भों में एक सुमित्रानंदन पंत द्वारा
चित्र भारतमाता शीर्षक कविता एक चर्चित कविता है। कवि प्रवृत्ति से छायावादी है, परन्तु उनके विचार उदार मानवतावादी है। इनकी प्रतिमा कलात्मक सूझ से सम्पन्न
है। युगबोध के अनुसार अपनी काव्य भूमिका विस्तार करते रहना पंत की काव्य-चेतना की
विशेषता है।
प्रस्तुत कविता कवि की प्रसिद्ध कविता उनकी कविताओं के
संग्रह ‘ग्राम्या’
से संकलित है। यह कविता आधुनिक हिन्दी के उत्कृष्ट प्रगीतों
में शामिल की जाती है। इसमें अतीत के गरिमा, गान द्वारा अबतक
भारत का ऐसा चित्र खींचा गया था जो वास्तविक प्रतीत नहीं होता है। धन-वैभव
शिक्षा-संस्कृति,
जीवनशैली आदि तमाम दृष्टियों से पिछड़ा हुआ धुंधला और
मटमैला दिखाई पड़ता है। परन्तु कवि भारत का यथातथ्य चित्र प्रस्तुत किया है। भारत
की आत्मा गाँवों में बसती है। ऐसी धारणा रखने वाली भारतमाता क्षुब्ध और उदासीन है।
शस्य श्यामला धरती आज धूल-धूसरित हो गई है। करोड़ों लोग-नग्न, अर्द्धनग्न हैं। अलगाववाद, आतंकवाद, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी सुरसा की तरह फैलते जा रहे हैं। चारो तरफ अज्ञानता, अशिक्षा फैली हुई है। गीता की उपदेशिका आज किंकर्तव्य विमूढ़ बनी हुई है। जीवन की सारी भंगिमाएँ धूमिल हो गई है। वस्तुतः कवि यथातथ्यों के माध्यम सम्पूर्ण भारतवासियों को अवगत करना चाहता है।