गुणाकर मुले का जन्म 1935 ई० में
महाराष्ट्र के अमरावती जिले के एक गाँव में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा
ग्रामीण परिवेश में हुई। शिक्षा की भाषा मराठी थी। उन्होंने मिडिल स्तर तक मराठी पढ़ाई
भी। फिर वे वर्धा चले गये और वहाँ उन्होंने दो वर्षों तक नौकरी की, साथ ही अंग्रेजी व हिंदी का अध्ययन किया। फिर इलाहाबाद आकर उन्होंने गणित विषय
में मैट्रिक से लेकर एम० ए० तक की पढ़ाई की। सन् 2009 में मुले जी का निधन हो गया।
गुणाकर मुले के अध्ययन एवं कार्य का क्षेत्र बड़ा ही व्यापक
है। उन्होंने गणित,
खगोल विज्ञान, अंतरिक्ष विज्ञान, विज्ञान का इतिहास,
पुरालिपिशास्त्र और प्राचीन भारत का इतिहास व संस्कृति जैसे
विषयों पर खूब लिखा है। पिछले पच्चीस वर्षों में मुख्यतः इन्हीं विषयों से संबंधि
तं उनके 2500 से अधिक लेखों तथा तीस पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। उनकी प्रमुख कृतियों
के नाम हैं –
‘अक्षरों की कहानी’, ‘भारत : इतिहास और
संस्कृति’,
‘प्राचीन भारत के महान वैज्ञानिक’, ‘आधुनिक भारत के महान वैज्ञानिक’, ‘मैंडलीफ’, ‘महान वैज्ञानिक’,
‘सौर मंडल’, ‘सूर्य’; ‘नक्षत्र-लोक’,
‘भारतीय लिपियों की कहानी’, ‘अंतरिक्ष-यात्रा’,
‘ब्रह्मांड परिचय’, ‘भारतीय विज्ञान
की कहानी आदि। गुणाकर मुले की एक पुस्तक है ‘अक्षर कथा’। इस पुस्तक में उन्होंने संसार की प्रायः सभी प्रमुख पुरालिपियों की विस्तृत
जानकारी दी है।
प्रस्तुत निबंध गुणाकर मुले की पुस्तक भारतीय लिपियों की
कहानी’ से लिया गया है। इसमें हिंदी की अपनी लिपि नागरी या देवनामरी के ऐतिहासिक
विकास की रूपरेखा स्पष्ट की गयी है। यहाँ हमारी लिपि की प्राचीनता, व्यापकता और शाखा विस्तार का प्रवाहपूर्ण शैली में प्रामाणिक आख्यान प्रस्तुत
किया गया है। तकनीकी बारीकियों और विवरणों से बचते हुए लेखक ने निबंध को बोझिल
नहीं होने दिया है तथा सादगी और सहजता के साथ जरूरी ऐतिहासिक जानकारियाँ देते हुए
लिपि के बारे में हमारे भीतर आगे की जिज्ञासाएँ जगाने की कोशिश की है।