हिन्दी के सशक्त कथाकार अमरकांत का जन्म जलाई 1925 ई० में नागरा, बलिया (उत्तरप्रदेश) में हुआ था। उन्होंने गवर्नमेंट
हाईस्कूल,
बलिया से हाईस्कूल की शिक्षा पायी । कुछ समय तक उन्होंने
गोरखपुर और इलाहाबाद में इंटरमीडिएट की पढ़ाई की, जो 1942 के स्वाधीनता संग्राम में शामिल होने से अधूरी रह गयी, और अंततः 1946 ई० में सतीशचंद्र कॉलेज बलिया से इंटरमीडिएट किया।
उन्होंने 1947 ई०
में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी० ए० किया और 1948 ई० में आगरा के दैनिक पत्र ‘सैनिक’ के संपादकीय विभाग में नौकरी कर ली।
आगरा में ही वे ‘प्रगतिशील लेखक संघ’ में शामिल हुए और वहीं से कहानी लेखन की शुरुआत की। बाद में
वे दैनिक अमृत. पत्रिका इलाहाबाद, दैनिक ‘भारत’
इलाहाबाद, मासिक पत्रिका ‘कहानी’ इलाहाबाद तथा ‘मनोरमा’ इलाहाबाद के भी संपादकीय विभागों से सम्बद्ध रहें । अखिल
भारतीय कहानी.प्रतियोगिता में उनकी कहानी ‘डिप्टी कलक्टरी’ पुरस्कृत हुई थी। उन्हें कथा लेखन के लिए ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ भी प्राप्त हो चुका है।
आजादी के बाद के हिंदी कथा साहित्य के महत्त्वपूर्ण कथाकार
अमरकांत की कहानियों में मध्यवर्ग, विशेषकर निम्न मध्यवर्ग के जीवनानुभवों और जिजीविषा का बेहद
प्रभावशाली और अंतरंग चित्रण मिलता है। अक्सर सपाट नजर आनेवाले कथनों में भी वे
अपने जीवंत मानवीय संस्पर्श के कारण अनोखी आभा पैदा कर देते हैं। अमरकांत के
व्यक्तित्व की तरह उनकी भाषा में भी एक खास किस्म का फक्कड़पन है । लोकजीवन के
मुहावरों और देशज शब्दों के प्रयोग से उनकी भाषा में एक ऐसी चमक पैदा हो जाती है
जो पाठकों को निजी लोक में ले जाती है।
अमरकांत के कई कहानी संग्रह और उपन्यास हैं। ‘जिंदगी और जोंक’, ‘देश के लोग’, ‘मौत का नगर’, ‘मित्र-मिलन’, ‘कुहासा’ आदि उनके कहानी संग्रह हैं और सूखा पत्ता’,
‘आकाशपक्षी’,
– ‘काले उजले दिन’,
“सुखजीवी’,
“बीच की दीवार’,
‘ग्राम सेविका आदि उपन्यास हैं।
उन्होंने ‘वानर
सेना नामक एक बाल उपन्यास भी लिखा है।
अमरकांतकी प्रस्तुत कहानी में मंझोले शहर के नौकर की लालसा
वाले एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार में काम करनेवाले बहादुर की कहानी है – एक नेपाली गवई गोरखे की । परिवार का नौकरी-पेशा मुखिया
तटस्थ स्वर में बहादुर के आने और अपने स्वच्छंद निश्छल स्वभाव की आत्मीयता के साथ
नौकर के रूप में अपनी सेवाएं देने के बाद एक दिन स्वभाव की उसी स्वच्छंदता के साथ
हर हृदय में एक कसकती अंतर्व्यथा देकर चले जाने की कहानी कहता है। . लेखक घर के
भीतर और बाहर के यथार्थ को बिना बनाई-सँवारी सहज परिपक्व भाषा में पूरी कहानी बयान
करता है । हिंदी कहानी में एक नये नायक को यह कहानी प्रतिष्ठित करती है।