पाश्चात्य कवियों में रेनर मारिया रिल्के’ का नाम आसानी से लिया जा सकता है। इन्होंने आधुनिक यूरोप के साहित्य को अपने
गहरे भावबोध तथा संवेदनात्मक भाषा और शिल्प से काफी प्रभावित किया है। इनकी
काव्यशैली गीतात्मक है और भावबोध में रहस्योन्मुखता है।
यह कविता विश्व कविता के भाषांतरित संकलन ‘देशान्तर’ से ली गयी है। रिल्के का आधुनिक विश्व कविता पर प्रभाव बताया जाता है। भक्त और भगवान दोनों एक दूसरे का पूरक हैं। भक्त के बिना भगवान भी एकाकी और निरूपाय हैं। कवि कहना चाहता है कि भगवान की भगवता भी भक्त की सत्ता पर ही निर्भर करती है। भक्त ही ईश्वर की वृत्ति और वेश है। भक्त ही ईश्वर का चरण-पादुका है। वस्तुतः यहाँ कवि कहना चाहता है कि व्यक्ति और विराट सत्य एक-दूसरे पर निर्भर है। प्रेम के धरातल पर अत्यन्तं पावनता पूर्वक यह कविता इस सत्य को अभिव्यक्त करती है।