पाठ का अर्थ
नई कविता काल के कवि प्रखर कवि जीवनानंद दास हिन्दी साहित्य
में अपना एक अलग पहचान बनाये हुए हैं। रवीन्द्रनाथ के बाद बंगला साहित्य में
आधुनिक काव्यांदोलन को जिन लोगों ने योग्य नेतृत्व प्रदान किया था उनमें सबसे अधिक
प्रभावशाली एवं मौलिक कवि जीवनानंद दास ही है। स्वच्छंदतावाद से अलग हटकर कविता की
नई यथार्थवादी भूमि तलाश कर इन्होंने ने एक नया आयाम दिया।
प्रस्तुत कविता में कवि का अपनी मातृभूमि तथा परिवेश से
उत्कट प्रेम अभिव्यक्त होता है। नश्वर शरीर त्यागने के बाद भी पुनः मनुष्य रूप में
अवतरित होकर बंगाल को ही अपना जन्मभूमि चुनने के पीछे कवि की उत्कृष्टता देखने में
बनती है। यदि मनुष्य में नहीं जन्म लूँ तो अबाबील, कौवा, हँस आदि में जन्म लेकर भी बंगाल की धरती पर ही विचरण करूँ।
नदी की पानी, कपास
के पेड़ों पर सुनाई पड़ने वाली बोली सभी में मेरा ही अंश हो’। नदी के वक्षस्थल पर तैरती हुए नौकाओं की पालों में भी
हमारी’
उत्कंठा है। संध्याकालीन आकाश में रेंगने वाले पक्षिगणों के
बीच हमारी उपस्थिति अनिवार्य होगी। वस्तुतः इस कविता में नश्वर जीवन के बाद भी इसी
बंगाल में एक बार फिर आने की लालसा मातृभूमि के प्रति कवि के प्रेम की एक मोहक
भंगिमा के रूप, में
सामने आती है।