पाठ का अर्थ
समकालीन हिन्दी कविता में अपनी एक अलग पहचान रखने वाली
कवयित्री और लेखिका के रूप में अनामिका अपने वस्तु परक और समसामयिक बोध और
संघर्षशील वंचित जन के प्रति रचनात्मक सहानुभूति के लिए जानी जाती है। स्त्री
विमर्श में सार्थक हस्तक्षेप करनेवाली अनामिका अपनी टिप्पणियों के लिए भी
उल्लेखनीय हैं।
प्रस्तुत कविता समसामयिक कवियों की चुनी गई कविताओं की
चर्चित श्रृंखला ‘कवि ने
कहा’
से यहाँ ली गयी है। प्रस्तुत कविता में बच्चों के अक्षर
ज्ञान की प्रारंभिक शिक्षण-प्रक्रिया का वर्णन किया गया है। बच्चों का अक्षर ज्ञान
वैविध्यपूर्ण होता है। उसके मनोभावों को पढ़ना और उसके सहज बोध के द्वारा सीखाना
अध्यापक अध्यापिका की शिक्षण कला का प्रदर्शन होता है। बच्चों को पढ़ाने के लिए
स्वयं बच्चा बनना पड़ता है। माँ पहली अध्यापिका होती है। जीवन बोध की पहला अक्षर
ज्ञान उसी के द्वारा प्राप्त होता है। ‘क’ लिखाने की प्रक्रिया पूरी भी नहीं होती है कि ‘ख”आकर
नीचे उत्तर जाती है। ‘ग’ में बेचैनी दिखती है कि ‘घ’ घड़ा की तरह लुढ़क जाता है। वस्तुतः कवयित्री माँ और बेटे के माध्यम से अक्षर
ज्ञान को सहज बोध को अपने ढंग से प्रस्तुत करना चाहती है। माँ-बेटे अक्षर ज्ञान के
लिए अथक परिश्रम करते हैं फिर भी असफलता ही हाथ लगती है। पहली विफलता पर आँसू छलक जाते हैं। ये आँसू ही
अक्षर-ज्ञान का पहला अक्षर हैं। सृष्टि की विकास की कथा इसी अक्षर ज्ञान से लिखी
हुई है।