पाठ का अर्थ
नई कविता के यशस्वी कवि हिन्दी साहित्य में अपना अलग पहचान
बनानेवाले वीरेन डंगवाल एक चर्चित कवि हैं। इनकी रचनाओं में यथार्थ का बहुत अलग, अनूठा और बुनियादी किस्म का . वर्णन मिलता है। उन्होंने
अपनी रचनाओं ने समाज के साधरण जनों और हाशिये पर स्थित जीवन को विशेष रूप से स्थान
दिया है। उनकी कविता में जनवादी परिवर्तन की मूल प्रतिज्ञा है और उसकी बनावट में
ठेठ देशी किस्म के खास और आम, तत्सम और तद्भव, क्लासिक और देशज अनुभवों की संश्लिष्टता है।
प्रस्तुत कविता कवि की कविताओं के संकलन ‘दुष्चक्र में स्रष्टा’ से संकलित है। इस कविता में कवि सुविधाभोगी आराम पसंद जीवन
अथवा हमारी लपरवाहियों के बाहर विपरीत परिस्थितओं से लगातार लड़ते हुए बढ़ते
जानेवाले जीवन का चित्रण है। ‘हमारी नींद’ अनमना-सा
है। नींद में भी सूत के पौधे कुछ बढ़ते हुए नजर आते हैं। मक्खियों की भाँति अत्याचारी
अपना जीवन यापन करते हैं। अत्याचारी बढ़ते हैं और मारे जाते हैं। आर्थिक स्थिति से
कमजोर वाले भी धना के के साथ जीवन जीना चाहते हैं। हम उन अत्याचारियों से डरते हैं
फिर भी हमारी नींद में कोई परिवर्तन नहीं होता है। हम बेपरवाह जीवन जीते हैं। बहुत
से ऐसे लोग हैं ज्यों अपने जीवन जीने की कला से इंकार नहीं कर सकते हैं। वस्तुतः
यहाँ कवि कहना चाहता है कि हम देखकर भी न देखने का भाव दिखाते हैं। न सो कर भी
गहरी नींद का ढोंग करते हैं।