सहसा मैं काफी गंभीर हो गया था, जैसा कि उस व्यक्ति की हो जाना चाहिए, जिस पर एक भारी दायित्व आ गया हो। वह सामने खड़ा था और
आँखों को बुरी तरह मलका रहा था। बारह-तेरह वर्ष की उम्रा ठिगना चकइरु शरीर, गोरा रंग और चपटा मुँह। वह सफेद नेकर, आधी बांह की. ही सफेद कमीज और भूरे रंग का पुराना जूता पहने
था। उसके गले स्काउटों की तरह एक रूमाल बंधा था। उसको घेरकर परिवार के अन्य लोग
खड़े थे। निर्मला चमकती दृष्टि से कभी लड़के को देखती और कभी मुझको और अपने भाई
को। निश्चय ही वह पंच-बराबर हो गई थी।
निर्मला को अपने भाभियों के पास नौकर को देखकर नौकर रखने की
इच्छा बहुत प्रबल हो गई थी। उसका भाई एक नौकर लाकर बहन के यहाँ रख देता है। पहले
उसके बारे में पूरी कहानी असाधारण विस्तार से बताता है। दिलबहादुर नाम का यह
नेपाली गँवइ गोरखा है। उसका पिता युद्ध में मारा गया था। माता जी घर चलाती थी। एक
दिन माता जी ने शरारत करने पर दिलबहादुर को बहुत मार मारा। वह वहाँ से भाग गया और
लेखक. महोदय के यहाँ नौकरी करने के लिए आ गया। वह मेहनती और भोला-भाला लड़का था।
उसके आने पर घर के सभी लोग बहुत स्वागत किया।
निर्मला प्रेम से बहादुर कहने लगी। घर के कामों में वह
सहयोग देने लगा। वह घर की सफाई करता, कमरों में पोंछा लगाता, अंगीठी जलाता, चाय बनाता और पिलाता। दोपहर में कपड़े धोता और बर्तन मलता।
वह रसोई बनाने की भी जिद करता, पर निर्मला स्वयं सब्जी और रोटी बनाती। निर्मला को उसकी
बहुत फिक्र रहती। दिन मजे से बीतने लगे। निस्संदेह बहादुर की वजह से सबको खूब आराम
मिल रहा था।
घर खूब साफ और चिकना रहता। कपड़े चमाचम सफेदा निर्मला की
तबीयत भी काफी सुधर गई। अब कोई एक खेर भी न टसकाता था। किसी को मामूली से मामूली
काम करना होता, तो वह
बहादुर को आवाज देता। ‘बहादुर
एक गिलास पानी।”बहादुर, पेन्सिल नीचे गिरी है, उठाना।’ इसी तरह की फरमाइशें। बहादुर घर में फिरकी की तरह नाचता
रहता। सभी रात में पहले ही सो जाते थे और सबेरे, आठ बजे के पहले न उठते थे।
किशोर अपना सारा काम बहादुर से करवाता। जूते में पॉलिश, साइकिल की सफाई, कपड़ो की धुलाई और इस्त्री भी। इतने सारी फरमाइशों में कोई
गड़बड़ी हो गई तो बुरी-बुरी गाली देना, मार-पीट, गर्जन-तर्जन आदि चालू हो गया। धीरे-धीरे निर्मला का हाथ भी
खुल गया। अब बहादुर को मारनेवाला दो लोग हो गये। कभी-कभी एक गलती पर दोनों लोग
मारते थे।
एक दिन रविवार को निर्मला के रिश्तेदार घर पर मिलने के लिए
आये। घर में बड़ी चहल-पहल मच गई। नाश्ता पानी के बाद बातों की जलेबी छनने लगी। इसी
समय एक घटना हो गई। अचानक रिश्तेदार की पत्नी ने चोरी इलजाम नौकर पर लगा दिया।
सबलोगों ने बारी-बारी से पूछा। लेकिन बहादुर नही-नहीं कहता रहा। पहले लेखक महोदय
ने बहादुर को मारा। फिर बाद में निर्मला ने भी बहादुर को मारा। इस घटना के बाद
बहादुर काफी डॉट-मार खाने लगा। वह . उदास रहने लगा और काम में लापरवाही करने लगा।
एक दिन मैं दफ्तर से विलम्ब से आया। निर्मला आँगन में
चुपचाप सिर पर हाथ रखकर . बैठी थी। अन्यं लड़कों का पता नहीं था, केवल लड़की अपनी माँ के पास खड़ी थी। अंगीठी अभी नहीं जली
थी। आँगन गंदा पड़ा था, बर्तन बिना मले हुए रखे थे। सारा घर जैसे काट रहा था।
क्या बात है ?- मैंने पूछा – बहादुर भाग गया। -भाग गया! क्यों ? पता नहीं।
निर्मला आँखों पर आँचल रखकर रोने लगी। मुझे क्रोध आया। मैं
चिल्लाना चाहता था, पर भीतर-ही-भीतर कलेजा जैसे बैठ रहा हो। मैं वहीं चारपाई पर सिर झुकाकर बैठ
गया। मुझे एक अजीब-सी लघुता का अनुभव हो रहा था। यदि मैं न मारता, तो शायद वह न जाता।