सुमित्रानंदन पंत का जन्म सन् 1900 में अलमोड़ा जिले के रमणीय स्थल कौसानी (उत्तरांचल) में हुआ था। जन्म के छह
घंटे बाद ही माता सरस्वती देवी का देहान्त हो गया। पिता गंगादत्त पंत कौसानी टी
स्टेट में एकाउंटेंट थे। पंतजी की प्राथमिक शिक्षा गाँव में हुई और फिर बनारस से
उन्होंने हाईस्कूल की शिक्षा पायी। वे कुछ दिनों तक कालाकांकर राज्य में भी रहे।
उसके बाद आजीवन वे इलाहाबाद में रहे 1 29 दिसंबर 1977 ई० में उनका निधन हो गया।
पंतजी का आरंभिक काव्य प्रकृति प्रेम और शिशु सुलभ जिज्ञासा
को लेकर प्रकट हुआ।उनकी आरंभिक रचनाएँ प्रकृति और सौंदर्य के प्रेमी कवि की
संवेदनशील अभिव्यक्तियों से परिपूर्ण हैं।
पंतजी प्रवृत्ति से छायावादी हैं, परंतु उनके विचार उदार मानवतावादी हैं। उन्होंने प्रसाद और निराला के समान
छंदों और शब्द योजना में नवीन प्रयोग किए। पंतजी की प्रतिभा कलात्मक सूझ से
सम्पन्न है,
अतः उनकी रचनाओं में एक विलक्षण मृदुता और सौष्ठव मिलता है।
युगबोध के अनुसार अपनी काव्यभूमि का विस्तार करते रहना पंत की काव्य-चेतना की
विशेषता है। वे प्रारंभ में प्रकृति सौंदर्य से अभिभूत हुए, फिर मानव सौंदर्य से। मानव सौंदर्य ने उन्हें समाजवाद की ओर आकृष्ट किया।
समाजवाद से वे अरविन्द दर्शन की ओर प्रवृत्त हुए। वे मानवतावादी कवि थे, जो मानव इतिहास के नित्य विकास में विश्वास करते थे। वे अतिवादिता एवं
संकीर्णता के घोर विरोधी रहे। उनका अंतिम काव्य ‘लोकायतन’
है जो उनके परिपक्व चिंतन को समेट देता है। उनकी प्रमुख
काव्यकृतियाँ हैं –
‘उच्छ्वास’, ‘पल्लव’, ‘वीणा’,
‘ग्रंथि’, ‘गुंजन’, ‘युगांत’,
‘युगवाणी’, ‘ग्राम्या’, ‘स्वर्णधूलि’,
‘स्वर्णकिरण’, ‘युगपथ’, ‘चिदंबरा’
आदि। पंतजी ने नाटक, आलोचना, कहानी,
उपन्यास आदि भी लिखा। ‘चिदंबरा’ पर उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ’ भी मिला।
प्रकृति सौंदर्य की कविता के लिए विख्यात कवि की रचनाओं में
यह कविता हिंदी की यथार्थवादी कविता के एक नये उन्मेष. की तरह है। प्रख्यात
छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत की यह प्रसिद्ध कविता उनकी कविताओं के संग्रह ‘ग्राम्या’
से संकलित है। यह कविता आधुनिक हिंदी के उत्कृष्ट प्रगीतों
में शामिल की जाती है। अतीत के गरिमा-गान द्वारा अब तक भारत का ऐसा चित्र खींचा
गया था जो ऐतिहासिक चाहे जितना रहा हो, वर्तमान को देखते
हुए वास्तविक प्रतीत नहीं होता था। धन-वैभव, शिक्षा-संस्कृति, जीवनशैली आदि तमाम दृष्टियों से पिछड़ा हुआ, धुंधला और मटमैला दिखाई पड़ता यह देश हमारा वही भारत है जो अतीत में कभी सभ्य, सुसंस्कृत,
ज्ञानी और वैभवशाली रहा था। कवि यहाँ इसी भारत का यथातथ्य
चित्र प्रस्तुत करता है।