पाठ का अर्थ
रीतियुगीन काव्य में धनानंद रीतिमुक्त काव्यधारा के सिरमौर
कवि हैं। इनकी कविताओं में प्रेम की पीड़ा, मस्ती और वियोग सबकुछ है। वियोग में सच्चा प्रेमी जो वेदन
सहता है,
उसके चित्त में जो विभिन्न तरंगे उठती हैं, उनका चित्रण धनानंद ने किया है। धनानंद ने वियोग दशा का
चित्रण करते समय ‘अलंकारों
रूढ़ियों का सहारा न लेकर मनोविकारों या वस्तुओं का नया आयाम दिया है। वस्तुतः
धनानंद ‘प्रेम की पीर’ के कवि हैं।
रीतिकाल के शास्त्रीय युग में उन्मुक्त प्रेम के स्वच्छंद
पथ पर चलने वाले महान प्रेमी कवि धनानंद के दो सवैये पस्तुत पद में है। प्रथम छंद
में कवि जहाँ प्रेम के सीधे सरल और निश्चय मार्ग की प्रस्तावना करता है। प्रेम एक
ऐसा अमृतमय मार्ग है जहाँ चातुर्य की टेढ़ी-मेढ़ी रूपरेखा नहीं है। इसमें छल उपर
श्लेष-मात्र भी नहीं है। मन के मनभावों को अनायास प्रदर्शित करने में सहजभाव
उत्पन्न हो जाता है।
दूसरे पद में मेघ की अन्योक्ति के माध्यम से विरह-वेदना से
भरे अपने हृदय की पीड़ा को अत्यन्त कलात्मक रूप में अभिव्यक्ति देता है। बादल अपने
लिए नहीं दूसरों के लिए शरीर धारण करता है। कवि का विरह-चित्त मिलन के उत्कौठत है।
जल से परिपूर्ण बादल अपनी वेदन के साथ एक नया भाव जोड़ देता है। जीवन की अनुभूति
प्रेम की सहभागिता में है। गगन की सार्थकता में घाटधन्न से है।