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3. अति सूधो सनेह को मारग है

 Feb 2024   

रीतियुगीन काव्य में घनानंद रीतिमुक्त काव्यधारा के सिरमौर कवि हैं। इनका जन्म 1689 ई० के आस-पास हुआ और 1739 ई० में वे नादिरशाह के सैनिकों द्वारा मारे गये। ये तत्कालीन मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीले के यहां मीरमुंशी का काम करते थे। ये अच्छे गायक और श्रेष्ठ कवि थे। किवदंती है कि सुजान नामक नर्तकी को वे प्यार करते थे। विराग होने पर ये वृंदावन चले गये और वैष्णव होकर काव्य रचना करने लगे। सन् 1939 में जब नादिरशाह ने दिल्ली पर आक्रमण किया तब उसके सिपाहियों ने मथुरा और वृंदावन पर भी धावा बोला। बादशाह का मीरमुंशी जानकर घनानंद को भी उन्होंने पकड़ा और इनसे जर, जर, जर (तीन बार सोना, सोना, सोना) माँगा। घनानंद ने तीन मुट्ठी धूल उन्हें यह कहते हुए दी, ‘रज, रज, रज’ (धूल, धूल, धूल)। इस पर क्रुद्ध होकर सिपाहियों ने इनका वध कर दिया।

 

घनानंद ‘प्रेम की पीर’ के कवि हैं। उनकी कविताओं में प्रेम की पीड़ा, मस्ती और वियोग सबकुछ है। आचार्य शुक्ल के अनुसार, “प्रेम मार्ग का ऐसा प्रवीण और धीर पथिक तथा जबाँदानी का ऐसा दावा रखने वाला ब्रजभाषा का दूसरा कवि नहीं हुआ है।” वियोग में सच्चा प्रेमी जो वेदना सहता है, उसके चित्त में जो विभिन्न तरंगे उठती हैं, उनका चित्रण घनानंद ने किया है। घनानंद वियोग दशा का चित्रण करते समय अलंकारों, रूढ़ियों का सहारा लेने नहीं दौड़ते, वे बाह्य चेष्टाओं पर भी कम ध्यान देते हैं। वे वेदना के ताप से मनोविकारों या वस्तुओं का नया आयाम, अर्थात् पहले न देखा गया उनका कोई नया रूप-पक्ष देख लेते हैं। इसे ही ध्यान में रखकर शुक्ल जी ने इन्हें ‘लाक्षणिक मूर्तिमत्ता और प्रयोग वैचित्र्य’ का ऐसा कवि कहा जैसे कवि उनके पौने दो सौ वर्ष बाद छायावाद काल में प्रकट हुए।

 

घनानंद की भाषा परिष्कृत और शुद्ध ब्रजभाषा है। इनके सवैया और घनाक्षरी अत्यंत प्रसिद्ध हैं। घनानंद के प्रमुख ग्रंथ हैं – ‘सुजानसागर’, ‘विरहलीला’, ‘रसकेलि बल्ली’ आदि।


रीतिकाल के शास्त्रीय युग में उन्मुक्त प्रेम के स्वच्छंद पथ पर चलने वाले महान प्रेमी कवि घनानंद के दो सवैये यहाँ प्रस्तुत हैं। ये छंद उनकी रचनावली ‘घनआनंद’ से लिए गए हैं। प्रथम छंद में कवि जहाँ प्रेम के सीधे, सरल और निश्छल मार्ग की प्रस्तावना करता है, वहीं द्वितीय छंद में मेघ की अन्योक्ति के माध्यम से विरह-वेदना से भरे अपने हृदय की पीड़ा को अत्यंत कलात्मक रूप में अभिव्यक्ति देता है। घनानंद के इन छंदों से भाषा और अभिव्यक्ति कौशल पर उनके असाधारण अधिकार को भी अभिव्यक्ति होती है।


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