अहिंसक प्रतिरोध सबसे उदात्त और बढ़िया शिक्षा है। वह
बच्चों को मिलनेवाली साधारण उक्षतर-ज्ञान की शिक्षा के बाद नहीं, पहले होनी चाहिए। इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि बच्चे को
वह वर्णमाला लिखे और सांसारिक ज्ञान प्राप्त करे उसके पहले यह जानना चाहिए कि
आत्मा क्या है, सत्य
क्या है,
प्रेम क्या है और आत्मा में क्या-क्या शक्तियाँ छुपी हुई
हैं।
मेरी राय में बुद्धि की सच्ची शिक्षा शरीर की स्थूल
इन्द्रियों अर्थात् हाथ, पैर,
आँख, कान,
नाक वगैरह के ठीक-ठीक उपयोग और तालीम के द्वारा ही हो सकता
है। आध्यात्मिक शिक्षा से मेरा अभिप्राय हृदय की शिक्षा है। इसलिए मस्तिष्क का
ठीक-ठीक और सर्वांगीण विकास तभी हो सकता है, जब साथ-साथ बच्चे की शारीरिक और आध्यात्मिक शक्तियों की भी
शिक्षा होती रहे।
शिक्षा से मेरा अभिप्राय यह है कि बच्चे और मनुष्य के.शरीर
बुद्धि और आत्मा के सभी उत्तम गुणों को प्रयास किया जाए। पढ़ना-लिखना शिक्षा का
अन्त तो है ही नहीं, वह आदि भी नहीं है। मैं चाहता हूँ कि सारी शिक्षा किसी दस्तकारी या उद्योगों
के द्वारा दी जाए।
आपको यह ध्यान में रखना चाहिए कि प्रारंभिक शिक्षा में सफाई, तन्दुरूस्ती, भोजनशास्त्र, अपना काम आप करने और घर पर माता-पिता को मदद देने वगैरह के
मूल सिद्धान्त शामिल हों।
जब भारत को स्वराज्य मिल जाएगा तब शिक्षा का ध्येय होगा? चरित्र-निर्माण। मैं साहस, बल, सदाचार और बड़े लक्ष्य के लिए काम करने में आत्मोत्सर्ग की शक्ति का विकास
कराने की कोशिश करूँगा। यह साक्षरता से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है, किताबी ज्ञान तो उस बड़े उद्देश्य का एक साधनमात्र है। यह
अच्छी मितव्ययिता होगी यदि हम विद्यार्थियों का एक अलग वर्ग ऐसा रख दें, जिसका काम यह हो कि संसार की भिन्न-भिन्न भाषाओं में से
सीखने की उत्तम बातें वह ज्ञान ले और उनके अनुवाद देशी भाषाओं में करके देता रहे।
मेरा नम्रतापूर्वक यह कथन जरूर है कि दूसरी संस्कृतियों की समझ और कद्र स्वयं अपनी
संस्कृति है। मैं नहीं चाहता कि मेरे घर के चारों ओर दीवारें खड़ी कर दी जायें और
मेरी खिड़कियाँ बन्द कर दी जायें। मैं चाहता हूँ कि सब देशों की संस्कृतियों की
हवा मेरे घर के चारों ओर अधिक-से-अधिक स्वतंत्रता के साथ बहती रहे। मगर मैं उनमें
से किसी के झोंक में उड़ नहीं जाऊँगा। लेकिन मैं नहीं चाहता हूँ कि भारतवासी अपनी
मातृभाषा को भूल जाए, उसकी उपेक्षा करे, उस पर शर्मिन्दा हो।