जन्म मेरो लखनऊ के जफरीन अस्पताल में 1938, 4 फरवरी,
शुक्रवार, सुबह 8 बजे : घर में आखिरी सन्तान। तीन बहनों के बाद। छह साल थी उम्र में मैं नवाब
साहब को बहुत पसंद आ गया। मैं नवाब साहब के पास जाकर नाचता था।
वहाँ से फिर निर्मला जी के स्कूल में यहाँ दिल्ली में
हिन्दुस्तानी डान्स म्यूजिक में चले गए। यहाँ दो तीन साल काम करते रहे। ये शायद 43 की बात रही होगी।
जहाँ वे खुद नाचते तो पहले मुझे नचवाते थे और खूब जोरों से
जमकर नाचता था। प्रायवेट प्रोग्राम जिनमें बाबू जी जाते थे जौनपुर, मैनपुरी,
कानपुर, देहरादून, कलकत्ता,
बंबई आदि, इनमें मुझे जरूर रखते
थे। पहले इसीलिए कलकत्ते में बहुत मजा आया। उसमें फर्स्ट प्राइज मिलने वाला था।
उसमें शम्भू महाराज चाचाजी और बाबू जी दोनों नाचे। पर उसमें फर्स्ट प्राइज मुझे
मिला।
हाँ साढ़े नौ साल की उम्र में बाबू जी मृत्यु हो गई। मुझे
तालीम बाबूजी से ही मिला। 500 रुपए देकर मैंने गण्डा बंधवाया। तो शागिर्द मैं बाबू जी का हूँ। उनके मरते ही
हम लोगों के बहुत खराब दिन शुरू हो गए। कानपुर में दो ढाई साल रहा। आर्यानगर में 25-25 रुपए की दो ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। 50 रुपए में काम कर
किसी तरह पढ़ता रहा मैं। पिताजी की मृत्यु के समय उनके श्राद्ध कर्म करने के लिए
पैसे नहीं। दस दिन के अंदर मैंने दो प्रोग्राम किए। 500 रु. इकट्ठे हुए तो दसवाँ और तेरहवीं की गई।
चौदह साल का था तो संगीत भारती आया। मैंने यहाँ साढ़े चार
साल काम किया। संगीत भारती की कमाई से मैंने एक साइकिल खरीदी थी जो मेरे पास आज भी
है। और उस साइकिल को मैं नहीं बेचता।
खैर उसमें से रश्मि जी एक लड़की मिली थी। उन्हें पूरे मन से
सिखाया। वो तालीम देखकर जो महाराज के यहाँ की लड़कियाँ अट्रेक्ट हुई। क्योंकि तालीम
जरा अच्छी थी मेरी। संगीत भारती के जमाने में कलकत्ते में एक कांफ्रेंस में नाचा
हूँ। कलकत्ते की ऑडियन्स ने मेरी बड़ी प्रशंसा की। इतनी की कि तमाम अखबारों में
मैं छप गया एकदम। उसके बाद हरिदास स्वामी कांफ्रेंस बंबई ब्रजनारायण ने बुलाया।
मेरा प्रोग्राम बहुत अच्छा हुआ। उसके बाद से बम्बई, कलकत्ते,
मद्रास आदि जगहों पर मेरा प्रोग्राम होने लगा। विदेश दूर
में सबसे पहले रूस गये। उसके बाद जर्मनी, जापान, हांगकांग,
लाओस, बर्मा आदि।
अम्मा को मैं सबसे बड़ा जज मानता हूँ। जब वो नाच देखती तो
मैं पूछता था कि मैं कहीं गलत तो नहीं कर रहा हूँ। मतलब बाबूजी वाला ढंग है ना
कहीं गड़बड़ी तो नहीं हो रही। तो कहती नहीं बेटा नहीं। उन्हीं की तस्वीर हो।